मंगलवार, 31 जनवरी 2012

कांग्रेस और रालोद की संयुक्त चुनावी सभा  मेरठ के राम लीला मैदान में ०२=०२=२०१२ को घोषित है|इस सभा में स्टार प्रचारक राहुल गांधी और जयंत चौधरी चुनावी लीला का मंचन करेंगे| इन हेवी वेट  युवाओं की सभा के लिए आलिशान या भव्य मंच तैयार किया जा रहा है| शासक+प्रशासक+नेता+सभी रिहर्सल करने आ रहे हैं|राहुल गांधी और  उनके साथ नए नए जुड़े जयंत की  प्रतिष्ठा दावं पर है|सो उनके स्थानीय नेता भी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं| स्थानीय अख़बारों में कांग्रेसी विग्ह्यापन छपवाए जा रहे हैं|तूफानी दौरे पर निकले इन इलेक्ट्रोनिक युग के नेताओं का कहीं विचार भंग ना हो विशेषकर भाषण देते समय कोई अप्रिय बात+जूता या कोई गरीब बेरोजगार बेघर नहीं दिखाई देना चाहिए इसके लिए  सभी स्तरों पर सभी प्रयास किये जा रहे हैं|
       कहा गया है की जब जब  जो जो  होना है तब तब सो सो होता है| ना जाने किसके भाग्य से बीते दिन के निरीक्षण के दौरान निरीक्षकों को  प्रस्तावित सभा स्थल राम लीला मैदान के एक छौर पर  ५० झौपड़े नुमा पोलिथीन की चार दीवारों में ढके २५० परिवार दिखाई दे गए|अब मखमल रूपी भव्य मंच के सामने टाट  माफ़ कीजिये पोलिथीन के पैबंद कैसे और किसे बर्दाश्त होते  सो  आनन् फानन में इन्हें हाथिओं की भाँती ढकने का सुझाव  के रूप में आदेश जारी कर दिया गया|
      बचपन में पड़ते रहे हैं की रोग का इलाज़ न करके उसे छुपाये जाने से रोग कौड़ बन जाता है और जब यह कौड़ फटता है तो ना जाने किस किस पर क्या क्या फटता है|गरीबी+बैघरी+बेरोजगारी का यह रोग समय रहते इलाज़ नहीं किये जाने से अब कौड़ नज़र आने लगा है|
    झल्ली सलाह है की  देश के इन भविष्य  से देश के इस रोग को छुपाने के  बजाये इसे खोल कर दिखाने की जरूरत है|शायद सभास्थल पर ही इस रोग का कोई इलाज़ हो जाये वरना  कांग्रेस के भविष्य के लिए रात के निशुल्क भोजन की व्यवस्था तो हो हे जायेगी| जमोस सबलोक 

सोमवार, 30 जनवरी 2012

|महात्मा या मोहन दास


महात्मा के बजाये एक और मोहन दास पैदा हो जल्दी पैदा हो |

आज मोहन दास करम चंद गांधी की पुन्य तिथि है |पूरा रास्त्र उन्हें श्रधांजली अर्पित कर रहा है |दुर्भाग्य वश ६ दशक बाद भी उन्हें महात्मा के रूप में  दीवारों या समाधि पर ही श्र्धासुमन अर्पित किये जा रहे हैं|
शायद यही कारण है की आज भी कोई अव्यवस्थाओं से लड़ने को मोहन दास पैदा नहीं हो सका |आज किसी भी मोहन दास को वाया अफ्रिका आने की जरूरत नहीं है हमारे देश में ही  बहुत स्कोप है महात्मा बनाने के लिए|
    इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि मोहन दास जब तक देश और समाज के लिए लड़ते रहे तब तक उनके गले में फूलों के हार डाले जाते रहे मगर जब मोहन दास महात्मा बनाये गए   तो  उनके सीने पर तीन गोलियां दाग  दी  गई। उनकी अस्थियाँ समाधि में और चित्र दीवारों के लिए रह गए।मोहन दास ने  दक्षिण अफ्रिका में पीड़ितों को न्याय दिलाया+अपने को  देश आज़ाद कराया मगर महात्मा ने देश का बटवारा स्वीकार किया और भारतीय खजाने से ५५००००००० रूपये भी दिए लाखों लोग बेघर हुए और मारे गए।
देश एक नए किस्म के भ्रस्टाचार कागुलाम हो गया।दीवारों पर महात्मा को टांगने की हौड़ में दीवारें  बदने लग गई।जब दीवारें कम होने लग गई तो दिलों में दीवारें पड़ने लग गई हैं।हर कोई अपना महात्मा बनाने में जुटा है। 
इसीलिए इश्वर करे देश के कल्याण के लिए एक और महात्मा के बजाये एक औरमोहन दास पैदा हो जल्दी पैदा हो |महात्मा या मोहन दास 

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

जूता एक्सपर्ट पर शौध तो बनता ही है।


 जूता फिर  चल गया अब की बार राहुल गांधी पर जूता  चल गया ।राहुल विचार चला हो या न चला हो मगर जूता चलाने वाला जरूर चल निकला है फिर से जूता या उसे चलने के कारण के बजाये जूता चलाने वाले की दस पुश्तें तक खबरों में आ रहीं है अगर ज्यादा कुछ हुआ तो उन पर शौध भी कराये जा सकते हैं |उसके बाद तो उनके लिए विपक्षी पार्टी के दरवाजे हमेशा के लिए खुल ही जायेंगे |
पहले यार लोग अपने नेता के समर्थन में जहाज़ तक हाई जेक करलेते थे ।छोटे मोटे छुट भैय्ये पुतला जलाने में महारत हासिल कर लेते थे।अनेकों लोग काले झंडे ही दिखा कर पिट लिया करते थे।और नेता बन जाते थे |लेकिन जब से इरानी इबनबतूता के जूते की चुर निकाल कर फ़िल्मी गीत कार गुले गुलज़ार हुए जा रहे हैं तब से जहाज़+झंडा+पुतला आदि  के बजाये जूते का उपयोग कुछ ज्यादा ही होने लग गया है| हमारे देश में उद्देश्यों के बजाये प्रसिधि पाने को आज कल यत्र तत्र सव्वत्र जूता ही चल रहा है नेता चले ना चले मगर आज कल जूता चल रहा है |कम्पनी या मेकर कोई भी हो मगर जूता होना चाहिए | प्रेस कांफ्रेंस हो या कोई जनसभा| जनसभा किसी भी पार्टी की हो उसमें भाषण चले या ना चले मगर जूता चल ही जाता है |जिस पर जूता चलाया जाता है उसके साथ साथ जूता चलाने वाला भी चल जाता है ये और बात है की जूता बनाने वाली कम्पनी को कोई नहीं पूछता|एलेत्रोनिक्स मीडिया के फलने फूलने से किसी  भी  ऐरे गैरे नत्हू खैरे पर जूता उछाल दो और अगर कोई सेलेब्रेटी हाथ आ जाए तो  फिर तो  पौ बारह |
अब तो खाल खींच कर जूता बनाने की बात तक करना अपराध है।जूते को बगल में लेकर चलने की भी जरूरत नहीं रहीं क्योंकिराज कपूर के जापानी जूते या फिर चीन के बाद अब सुख नाल हमारे सोणे भारत में भी ऐसे जूते बनने लगे हैं और इम्पोर्ट होने लगे हैं  जिन्हें गले में भी डालने की कईयों की इच्छा होती होगी ऐसे में पैर में डालने पर तो जूते के चुर करने का सवाल ही नहीं उठता |अब जूता कैसा भी हो कौन देखता है |वैसे तो आज कल  जनसभा या प्रेस कांफ्रेंस में 
जूता पहन कर जाना जरूरी नहीं रहा ।जूते को पोलिश से चमकाना भी लाजमी नहीं रहा।इसी लिए अपना हो या माँगा हुआ हो जूता होना चाहिए ।बेशक नेता जी जूते के बजाये चप्पल में आयें मगर जूता फ्हैन्कू तो जूता में ही आते हैं।  मीडिया गेलेरी सबसे मुफीद जगह होते है बस किसी तरह घुस जाओ उसके बाद मौका कोई भी हो बस ज़रा झुको एक पैर को उठाओ और जूता निकाल  कर वक्ता+टार्गेट  की तरफ उछाल दो  इसके लिए  सफल या परिपक्व निशाने बाज़ होना भी जरूरी नहीं है।ज्यादा हैमर थ्रो एक्सपर्ट होना भी जरूरी नहीं है जूते को नज़दीक या पास या समीप  उछाल कर ही सिधि प्राप्त हो जाती है।ऐसे  जूता एक्सपर्ट पर शौध तो बनता ही है।