सोमवार, 30 जनवरी 2012

|महात्मा या मोहन दास


महात्मा के बजाये एक और मोहन दास पैदा हो जल्दी पैदा हो |

आज मोहन दास करम चंद गांधी की पुन्य तिथि है |पूरा रास्त्र उन्हें श्रधांजली अर्पित कर रहा है |दुर्भाग्य वश ६ दशक बाद भी उन्हें महात्मा के रूप में  दीवारों या समाधि पर ही श्र्धासुमन अर्पित किये जा रहे हैं|
शायद यही कारण है की आज भी कोई अव्यवस्थाओं से लड़ने को मोहन दास पैदा नहीं हो सका |आज किसी भी मोहन दास को वाया अफ्रिका आने की जरूरत नहीं है हमारे देश में ही  बहुत स्कोप है महात्मा बनाने के लिए|
    इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि मोहन दास जब तक देश और समाज के लिए लड़ते रहे तब तक उनके गले में फूलों के हार डाले जाते रहे मगर जब मोहन दास महात्मा बनाये गए   तो  उनके सीने पर तीन गोलियां दाग  दी  गई। उनकी अस्थियाँ समाधि में और चित्र दीवारों के लिए रह गए।मोहन दास ने  दक्षिण अफ्रिका में पीड़ितों को न्याय दिलाया+अपने को  देश आज़ाद कराया मगर महात्मा ने देश का बटवारा स्वीकार किया और भारतीय खजाने से ५५००००००० रूपये भी दिए लाखों लोग बेघर हुए और मारे गए।
देश एक नए किस्म के भ्रस्टाचार कागुलाम हो गया।दीवारों पर महात्मा को टांगने की हौड़ में दीवारें  बदने लग गई।जब दीवारें कम होने लग गई तो दिलों में दीवारें पड़ने लग गई हैं।हर कोई अपना महात्मा बनाने में जुटा है। 
इसीलिए इश्वर करे देश के कल्याण के लिए एक और महात्मा के बजाये एक औरमोहन दास पैदा हो जल्दी पैदा हो |महात्मा या मोहन दास 

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