शनिवार, 28 अप्रैल 2012

ओये पहले तो ये बता की गरीब कौन है ???

एक  सामान्य  नागरिक  
ओये झल्लेया ये क्या हो रहा है?ओयेपहले तो ये बता की इस देश में गरीब कौन है 
३/२०१२ में घोषित [शहरी]२८.६५ [ग्रामीण]२२.४२ या फिर  पहली  रिपोर्ट के अनुसार ३२/-और २६/=
या फिर ६६.१०/=और ३५.१०/=या फिर  
[१]आयकर में २००००० तक की आय वाला कर से मुक्त 
[२]यौजना आयोग की नज़र में ४० रुपये से भी कम आय वाला गरीब
[३]अब ६००००० तक की आय वाला गरीब
[४]एक करोड़ रुपये की गाडी चलाने वाला डीज़ल के लिए सब्सिडी का हकदार
[५] सांसद +विधायक  सरकारी आवास के अलोटमेंट के लिए गरीब
 [६] १०-१२ के छात्र लेपटोप के लिए गरीब 
[७]सरकारी स्कूलों का छात्र गरीब 
[८]सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाला गरीब
[९]अल्प संख्यक गरीब या फिर 
[१०]अनुसूचित गरीब 

हसाडे सोणे ते मन मोहणे 'पी एम् ने संसद की स्थाई समिति की सिफारशें मान कर घरेलू गैस सिलेंडर से सब्सिडी हठाने का मन बना लिया है।
 हुन  तो अमीरों को गैस का एक सिलेंडर १००० रु'प'यों में मिला करेगा |
भई ये तो नाइंसाफी ही हुई पहले जनाब मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने ४० रुपयों से भी कम कमाई वालों को गरीब बताया था अब ६००००० रुपये तक सालाना कमाने वाला सब्सिडी का हक़दार होगा 
ऐसा कैसे चलेगा??
झल्ला 
   ओ भोले बादशाओ हसाड़े मुल्क में पार्टी और सरकार  और आयोग के  अपने अपने गरीब होते है २९ राज्यों के भी  अपने ही आंकड़े हैं। राष्ट्रीय आवश्यकता अलग है\ इसीलिए जैसा गरीब बनना हो उसी पार्टी और राज्य  में घुस जाओ और गरीबी का लाभ उठाओ 

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

'प्रत्याशी अविभावक और वाहनों की व्यवस्था केंद्र के अन्दर ही रहे।


    यूं.'पी.टी.यूं.के लिए २४००० और बी.एड.+एस.एस.सी. के लिए 25000 छात्र  अपना  भाग्य आज़मा रहे हैं। इन 'परीक्षाओं के लिए  केंद्र  बनाये गए हैं।इन  केन्द्रों में अन्दर की  व्यवस्था तो  जैसी होगी होगी मगर इन आलिशान केन्द्रों के बाहर  हमेशा की तरह ट्रेफिक की समस्या का निदान होगा इस पर संदेह है।
    गनीमत है की इंजीनियरिंग के लिए रविवार को और शेष के लिए सोमवार का दिन निश्चित किया गया है अन्यथा ट्रेफिक की स्थिति टेरिफिक हो सकती थी\
     शिक्षा के इन स्रोतों के लिए वर्चस्व सरकारों के हाथों में होता है मगर व्यवस्था के लिए निजी संस्थानों को हायर किया जाता है इसके लिए मोटी रकम भी अदा की जाती है लेकिन इन केन्द्रों के बाहर लगभग अराज़कता ही दिखाई देती है ।
[१] २२२-०४-२०१२ गंगानगर के एक प्रबंध कालेज के बाहर ट्रेफिक समस्या 

[२]२२-०४-२०१२ परीक्षा केंद्र के बाहर अनियंत्रित वाहन 
  देखा जाता है की  'प्र्त्याशिओन के साथ उनके अविभावक  और वाहनों की बड़ी भीड़  निश्चित समय से पूर्व ही  लगने लगती है कालेज के गेट निश्चित अवधि पर ही खुलते है जबकी बाहर किसी रैली का नज़ारा दिखने लगता है \निश्चित समय पर 'प्रत्याशी तो केन्द्रों में चले  जाते  हैं मगर अविभावक और वाहन बाहर सड़क 'पर या किनारे ''पर  ही रह  जाते   हैं।इसीके कारण छेत्र में ट्रेफिक की समस्या उत्पन्न हो जाती है\
सम्भवत इसीलिए ट्रेफिक और सिविल पोलिस को समन्वय बना कर व्यवस्था को सुचारू रखने  के आदेश दिए गए थे मगर इस सबके बावजूद वाहन और अविभावक बाहर सडकों पर अनियंत्रित  ही रहते हैं\।


  यूं.''पी,टी यूं.का ही अगर उदहारण लिया  जाए तो एक केंद्र के लिए १००० से  ज्यादा ''परीक्षार्थी  हैंइन परीक्षाओं से केन्द्रों को मोटी आर्थिक कमाई  और  पब्लिसिटी भी ज्यादा मिलती है।इसीके फलस्वरूप इनका चैत्रफल बढ़ता जा रहा है इसीलिए  कमसे कम  छात्रों के  अविभावकों और वाहनों के  लिए केंद्र के अन्दर  किसी उचित  व्यवस्था  की उम्मीद तो की ही जा सकती है। 

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

महात्मा गांधीके चश्मे से देख करचरखे को महत्त्व ज्यादा उपयोगी होगा

मोहन दास करम चंद महात्मा गांधी  अपनी शहादत के ६ दशको के पश्चात भी लोकप्रिय हैं+प्रासंगिक है+प्रेरणास्रोत है |बेशक भारत सरकार के प्रबंधकों के लिए महात्मा अब केवल  चुनाव  के समय ही उपयोगी रह गया हो।  महात्मा  का  शांति वन [समाधि]  जन्म और  शहादत दिवसों  पर फूल चडाने या फिर कभी कभी   वहां विरोध स्वरुप अनशन करने के लिए रह गया हो मगर अनिवासी भारतीओं के लिए अपने इस बापू  जी के लिए आज भी पूर्ण श्रधा है सम्मान है तभी भारत सरकार द्वारा कोई रूचि ना दिखाए जाने 'पर भी  इंग्लेंड  के श्राप शायर  में एक भारतीय ने नीलामी के दौरान  ८१ लाख रुपयों में बापू के २९ स्मृति चिह खरीद लिए है ।
   
यूं तो राष्ट्रपिता की नीतियाँ भी उनके चरखे की तरह केवल शो पीस बनी कोठ्रिओं में कैद है।और से स्मृति चिन्ह भी किसी शीशे के फ्रेम में रख दिए जायेंगे लेकिन २२ लाख में चरखा और २७ लाख में चश्मा के साथ  साथ 8 लाख में बापू के खून  से सनी  दिल्ली  की मिट्टी  और घास  की भी खरीद हुई  है यह सराहनीय है अगर देखा जाये तो किसी भी राष्ट्र  के पिता की  प्रेरणा दायक  स्मृति चिन्हों को मौल लगाना संभव नहीं  होता इसीलिए इन २९ वस्तुओं के लिए ८१ लाख कोई ज्यादा नहीं है अगर केन्द्रीय या दिल्ली सरकार या फिर कोई सरकारी संग्राहलय बोली लगाता तो शायद नीलामी की राशि में  अनावश्यक  उबाल आ सकता था ।लेकिन इसके साथ ही यह प्रशन भी  जरूरी है कि ये सभी वस्तुएं क्या स्मगल [तस्करी]करके तो नहीं ले जायी गई अगर ऐसा है तो नीलामी के बजाये कानूनी कार्यवाही अधिक उचित  होती  
हे राम  मेरी चीजों को नहीं मेरे विचारों को खरीदो 
  इतना महँगा चिन्ह खरीदे जाने से लंगोटी वाले इस बाबा के प्रति सम्मान और बढ गया है ।खून से सनी मिटटी और घास को गंगा में बहाने 'पर भी शायद इस दिवंगत आत्मा को शान्ति ना मिले मगर उनके चश्मे से देख कर चरखे को अगर  महत्त्व   दिया  गया तो देश  सही  मायनों  में उन्नति   करेगा  और तब  जाकर  उनकी आत्मा  को  सच्ची शान्ति मिलेगी 

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

तालिबान ने अफगानिस्तान पर   अटैक किया 
अफगानिस्तान  थर्राया करजई घबराया है 
 पाकिस्तान  लेकिन   कतई नहीं शरमाया है 
 हाँ भारत  बेशक  कुछ  घबराया है तभी तो 
 सेना के तीनो अंगों को रक्षा मंत्री ने चेताया है
उधर तना खडा चायना अपने शागिर्द की उपलब्धिओं पर 
   मन ही मन मुस्कुराया है
आतंकवादी तालिबान  देखो फिर से खिलखिलाया  है और
 अमेरिका आदतन झुन्झुलाया है बौखलाया है
 तिलमिलाया है  बल खाया और तमतमाया है