मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

महात्मा गांधीके चश्मे से देख करचरखे को महत्त्व ज्यादा उपयोगी होगा

मोहन दास करम चंद महात्मा गांधी  अपनी शहादत के ६ दशको के पश्चात भी लोकप्रिय हैं+प्रासंगिक है+प्रेरणास्रोत है |बेशक भारत सरकार के प्रबंधकों के लिए महात्मा अब केवल  चुनाव  के समय ही उपयोगी रह गया हो।  महात्मा  का  शांति वन [समाधि]  जन्म और  शहादत दिवसों  पर फूल चडाने या फिर कभी कभी   वहां विरोध स्वरुप अनशन करने के लिए रह गया हो मगर अनिवासी भारतीओं के लिए अपने इस बापू  जी के लिए आज भी पूर्ण श्रधा है सम्मान है तभी भारत सरकार द्वारा कोई रूचि ना दिखाए जाने 'पर भी  इंग्लेंड  के श्राप शायर  में एक भारतीय ने नीलामी के दौरान  ८१ लाख रुपयों में बापू के २९ स्मृति चिह खरीद लिए है ।
   
यूं तो राष्ट्रपिता की नीतियाँ भी उनके चरखे की तरह केवल शो पीस बनी कोठ्रिओं में कैद है।और से स्मृति चिन्ह भी किसी शीशे के फ्रेम में रख दिए जायेंगे लेकिन २२ लाख में चरखा और २७ लाख में चश्मा के साथ  साथ 8 लाख में बापू के खून  से सनी  दिल्ली  की मिट्टी  और घास  की भी खरीद हुई  है यह सराहनीय है अगर देखा जाये तो किसी भी राष्ट्र  के पिता की  प्रेरणा दायक  स्मृति चिन्हों को मौल लगाना संभव नहीं  होता इसीलिए इन २९ वस्तुओं के लिए ८१ लाख कोई ज्यादा नहीं है अगर केन्द्रीय या दिल्ली सरकार या फिर कोई सरकारी संग्राहलय बोली लगाता तो शायद नीलामी की राशि में  अनावश्यक  उबाल आ सकता था ।लेकिन इसके साथ ही यह प्रशन भी  जरूरी है कि ये सभी वस्तुएं क्या स्मगल [तस्करी]करके तो नहीं ले जायी गई अगर ऐसा है तो नीलामी के बजाये कानूनी कार्यवाही अधिक उचित  होती  
हे राम  मेरी चीजों को नहीं मेरे विचारों को खरीदो 
  इतना महँगा चिन्ह खरीदे जाने से लंगोटी वाले इस बाबा के प्रति सम्मान और बढ गया है ।खून से सनी मिटटी और घास को गंगा में बहाने 'पर भी शायद इस दिवंगत आत्मा को शान्ति ना मिले मगर उनके चश्मे से देख कर चरखे को अगर  महत्त्व   दिया  गया तो देश  सही  मायनों  में उन्नति   करेगा  और तब  जाकर  उनकी आत्मा  को  सच्ची शान्ति मिलेगी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें