गुरुवार, 18 जून 2009

कर्फयू की लानत से कब मुक्ति मिलेगी

एक मेरठी
ओये झ्ल्लेया हसाडे सोणे मेरठ को किस कमबख्त की बुरी नज़र लग गयीअच्छे खासे अमन चैन से जी रहे थे किअचानक वीभत्स साम्प्रदायिकता कि भीषण ज्वाला धधक उठीमंदी के मौजूदा दौर में भी कर्फयू की लानत झेलनी पड़ रही हैओये गरीबी में आटा और गीला हो रहा हैओये कब अमन बहाल होगाकब कर्फयू की लानत से मुक्ति मिलेगीबुरी नज़र वाले का मुह काला होगा
झल्ला
भोले शाह जी दरअसल हम मैरठिओं की एक बुरी आदत हैसामान्य शान्ति पूर्वक दैनिक चर्या से हम लोग बहुत जल्दी उकता जाते हैबोर हो जाते हैशान्ति पूर्वक बैठे रहने से हमारे शरीर के जोडों में जंक लगना शुरू हो जाता हैइस प्राकर्तिक [नैचुरल]बीमारी से निजात पाने के लिए साम्प्रदायिक दंगो का मन पसंद खेल खेला जाता है

2 टिप्‍पणियां:

  1. Choti si baatchit se itna to pata chala ki ye samaj apne aapme chizo ko bikhrte huye dekhta hai or sambhalta bhi hai. par sab ko karne ka apna man hona chahiye jo ki chalta aa raha hai. is natural bimaari me.

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  2. yes recently when curfew imposed i was not able to go and console for loss of mother of my friend, he leaves in meerut.

    its bad

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