रविवार, 20 मई 2012

फिलवक्त क्रिकेट की नाजायज़ पैदाईश ही सबपे भारी है

बचपन था रईस फाक्तायें हमने भी तब बहुत उड़ाई हैं|
लेकिन अब ये आलम काले कव्वे  तक के दीदार नहीं ||
चला लिया करते थे तब पानी में कागज़ के भी जहाज़ |
मगर अब पानी और कागज़ दोनों के लिए जंग जारी है|| 
बैट उठा कर तौडा किया करते थे कांच और खिड़कियाँ कभी| 
फिलवक्त क्रिकेट की नाजायज़ पैदाईश ही सबपे भारी है ||
आई पी एल कहते जिसे उसमे हैं बेशक खूबसूरत रंग कई \
किस्मत कि मार ऐसी ये भी सभी बदसूरत हुए जाते हैं||
डॉलर है औरों कि तरह हमको भी चहेता आज भी बहुत|
लेकिन रब्बा क्या करें रुपये पर झल्ले को भी आंसू आते हैं||

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