उत्तर प्रदेश में तकनीकी शिक्षा में क्वालिटी लाने और खाली सीटों की समस्या को सुलझाने के लिए अब नए तकनीकी शिक्षण संस्थान ना खोलने और पुराने कालेजों में सीटें न बढाने का निर्णय ले लिया गया है अब पुराने कालेजों में तीन साल तक नई सीटें नहीं बडाई जायेंगी
गौतम बुद्ध प्राविधिक विश्वविद्यालय ने इस बाबत शासन और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को अप्रोच करने का निर्णय भी ले लिया है ।
गौर तलब है की वर्तमान में दो तकनीकी विश्वविद्यालयों के साथ लगभग 700 निजी कालेज हैं इन कालेजों में 1.5 लाख से ऊपर सीटें हैं ।लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार इनमे से लगभग आधी सीटें खाली रह जाती हैं
इस निर्णय के पीछे का सियासी मकसद कुछ भी रहा हो मगर एक बात तो तय है की अधिकाँश निजी कालेजों से अनेक अनियमितताओं की शिकायतें आती रहती है और अखबारों की सुर्खियाँ भी बनती रहती है
[1]शिक्षा की गुणवत्ता [2] पूअर केम्पस प्लेसमेंट[3] फीस [4]मेस [5]ट्रांसपोर्ट [6]फेकल्टी का अभाव आदि अनेक कारण है लेकिन इनमे मुख्यत शिक्षा की पूअर क्वालिटी और इसके कारण प्लेसमेंट में गिरावट है
आज कल कई कालेजों में प्लेसमेंट के लिए इन्टरवियू कराने के लिए भी अलग से फीस ली जाने लगी है यह आम फीस स्ट्रक्चर से अलग होती है ।
सब मिला कर यही कहा जा सकता है की पूअर क्वालिटी की महंगी शिक्षा लेने के बावजूद बेरोजगार रहने से प्रदेश में असंतोष व्याप्त होना स्वाभाविक ही है ।शायद इसीलिए तकनिकी शिक्षा की इन महंगी और बेरोजगार बनाने वाली चमकती दुकानों पर अंकुश लगाया जाना ही चाहिए । इस दिशा में यह देर से लिया गया उचित निर्णय है
यहाँ इस निर्णय के एक विशेष नियमावली पर टिप्पणी करना चाहूँगा \
कालेजों के अनुरोध पर तीन वर्षों के बाद सीटें बडाई जायेंगी मगर उसके लिए कालेज का रिसल्ट को आधार बनाया जाएगा । मुख्यमंत्री का बस इसी पेंच पर ध्यान चाहूँगा
कालेज के रिसल्ट के साथ साथ कालेज में केम्पस प्लेसमेंट और केम्पस के बाद प्लेसमेंट के लिए सुविधा प्रोवाइड करने के लिए अतिरिक्त फीस को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि बेरोजगारी की विशालकाय समस्या के मध्य् नज़र शिक्षण विशेषकर तकनीकी शिक्षण संस्थानों में क्वालिटी या सफलता का पैमाना तय किया जाना बेहद जरूरी है को
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