में रठ की समस्यायों की जानकारी तो है नहीं इन्हें तत्काल दूर करने का सभी दलों का दावा
आज कल मेरठ निगम के लिए चुनावी समर में ताल थोक कर कूदे महारथी अपना सीना ठोक कर मेरठ को बहिश्त+स्वर्ग+चमन+विकसित बनाने के दावे करने में लगे हैं |
आज कल मेरठ निगम के लिए चुनावी समर में ताल थोक कर कूदे महारथी अपना सीना ठोक कर मेरठ को बहिश्त+स्वर्ग+चमन+विकसित बनाने के दावे करने में लगे हैं |
मुह बाए खडी मेरठ की समस्याओं को दूर करने और विकास की गंगा बहाने की बात की जा रही है |ये बातें 80 पार्षदों के लिए 900+ प्रत्याशी और मेयर के लिए 5 मुख्य प्रत्याशी कर रहे है|इनमे से अधिकाँश ऐसे प्रत्याशी हैं जो सांप पकड़ने का मन्त्र नहीं जानते और बिच्छू को पकड़ने का आश्वासन दे रहे हैं |अर्थार्त समस्यायों की जानकारी तो ही नहीं इनके तत्काल निदान की बात कर रहे हैं|
भाजपा और कांग्रेस के बाद अब सपा भी खुल कर मैदान में हैं और समस्याओं के निदान करने का दावा कर रहे हैं।बसपा अभी विधायकी के चुनावों में मिली हार से उबरी नहीं है ।इस लिए खुल कर सामने नहीं आ रही है मगर इस दल के प्रतिनिधि भी मैदान में हैं।बेसिक शिक्षा और चिकित्सा की समस्या तो है ही ईनके अलावा भी अनेकों समस्याएं मेरठ को मिटाने पर तुली हैं।
ये सभी सारी समस्यायों को दूर करने के दावे कर रहे हैं।अब 20% प्रत्याशी निरक्षर और इतने ही मेट्रिक भी नहीं है इनलोगों की यह दलील होती है की जब अंगूठा छाप देश चला सकते हैं तो हम निगम क्यूं नहीं चला सकते। यह कोई नहें बता रहा की कैसे समस्याएं दूर होंगी \क्या इनके पास कोई गीदड़ सिंगी है या अलादीन का जादुई चिराग है ।खैर मेरे विचार में यहाँ विचारणीय निम्न समस्याएं है उनका निदान मेरे हिसाब से उनके सामने है ।अब इन्हें कैसे दूर किया जायेगा यह तो प्रत्याशी बता सकते हैं।
भाजपा और कांग्रेस के बाद अब सपा भी खुल कर मैदान में हैं और समस्याओं के निदान करने का दावा कर रहे हैं।बसपा अभी विधायकी के चुनावों में मिली हार से उबरी नहीं है ।इस लिए खुल कर सामने नहीं आ रही है मगर इस दल के प्रतिनिधि भी मैदान में हैं।बेसिक शिक्षा और चिकित्सा की समस्या तो है ही ईनके अलावा भी अनेकों समस्याएं मेरठ को मिटाने पर तुली हैं।
ये सभी सारी समस्यायों को दूर करने के दावे कर रहे हैं।अब 20% प्रत्याशी निरक्षर और इतने ही मेट्रिक भी नहीं है इनलोगों की यह दलील होती है की जब अंगूठा छाप देश चला सकते हैं तो हम निगम क्यूं नहीं चला सकते। यह कोई नहें बता रहा की कैसे समस्याएं दूर होंगी \क्या इनके पास कोई गीदड़ सिंगी है या अलादीन का जादुई चिराग है ।खैर मेरे विचार में यहाँ विचारणीय निम्न समस्याएं है उनका निदान मेरे हिसाब से उनके सामने है ।अब इन्हें कैसे दूर किया जायेगा यह तो प्रत्याशी बता सकते हैं।
[१] पूरे देश की भांति मेरठ में भी रिश्वत का घुन लगा हुआ है|यहाँ जन्म प्रमाण पत्र से लेकर छेत्र की सफाई और भवन निर्माण तक में लेन देन अब टेबल के नीचे नहीं बल्कि टेबल के ऊपर
होने लगा है| देश के दक्षिण की एक पालिका में ऐसे ही जन्म प्रमाण पत्र के लिए जब अनावश्यक देरी की गई तो पीड़ित ने सीधे विभाग के नाम ही रिश्वत के १००/=का ड्राफ्ट बनवा कर भेज दिया
तब जाकर वहां हंगामा हुआ और अधिकारी अमला चेता |हमारा मेरठ भी संक्रमण से अछूता नहीं है|यहाँ आये दिन ऐसी शिकायतें आती रहती है और प्रशासन इम्म्युन[असंक्रम्य्ह] हो चुका है|
निदान
हर समस्या के लिए समय निर्धारित करके पारदर्शिता लानी चाहिए इसके लिए हर काम को वेब साईट पर लाना होगा|
[२]अनाधिकृत कालोनियां
मेरठ में आये दिन आउटर मेरठ के अलावा मेरठ के अन्दर भी इल्लीगल इम्मिग्रेंट्स तक दिखाई देते हैं | इससे इनका शोषण तो होता ही है साथ ही गैर कानूनी गतिविधिओं को भी गति मिलती है\
निदान
इस विषय में वोट बैंक की भूख सभी राजनितिक दलों में है और इसके लिए समस्या के निदान के लिए अपनी आँखें मूँद लेते हैं।इससे समस्या का निदान तो होता नहीं हाँ छोटी बिल्ली बड़े खतरनाक बिल्ले का रूप ले लेती है।क्यूं नहीं इनसब को कानूनी जामा पहनाया जा सकता इनकी पहचान करा कर पोलिस वेरिफिकेशन करवा कर इन्हें मुख्यधारा में लाया जा सकता।अब तो अमेरिका में बराक ओबामा तक ने अपने वोटर्स को लुभाने के लिए वहां के इल्लीगल इम्मिग्रेंट्स को वर्क परमिट तक देने की बात कह दी है। यहाँ भी यह मर्ज़ इतना बढ गया है की इसे ही दवा बनाना पडेगा सो हमारे यहाँ भी इसे नियमित करके फंड्स क्रिएट किये जा सकते है
[3]असमान विकास
निदान
मेरठ के पोश कलोनिओं की आज तो सफाई =सड़क+नाली+पानी आदि की जो नारकीय स्थिति है उसे देख कर मलीन बस्तिओं की हालात समझी जा सकती है मुझे याद है की एक बार चेयर मेन अंसारी ने इससे पल्ला झाड़ते हुए कहा था की क्या सारा बजट यहीं खत्म कर दिया जाये ।कमोबेश वोही इस्थिति आज भी है ।
छेत्र वार बजट का आवंटन किया जाना चाहिए और सभासदों के माध्यम से आवश्यक कार्य करने चाहिए
इसे भी वेब साईट पर होना चाहिए।
[4]विभागों में सामंजस्य का अभाव कभी कभार सड़क बन भी जाये तो कभी केबल वाले तो कभी पानी वाले अब तो गैस वाले भी सड़को को काटने लग गए हैं ।बेशक हर विभाग का अपना अपना बजट होता है मगर आता तो हमारी जेबों से ही है यदि में भूलता नहीं तो सांसद ने संसद में भी यह सवाल उठाया था मगर वोही सांसद अपने इस छेत्र में कोई दबाब नहीं बना सके नतीजतन यत्र तत्र सर्वत्र भद्दे द्रश्य ही नज़र आते हैं।
निदान
उच्च स्तर पर सभी प्रभावी विभागों से पूरे वर्ष के कार्यक्रम की वरीयता ली जानी चाहिए और उसके हिसाब से कार्य में सामजस्य बैठाना चाहिए।इसकी अवहेलना करने वालों को दण्डित भी किया जानाचाहिए ।अक्सर देखा जता है की वर्ष के अंतिम माहों में ही कार्य समापन कराया जाता है इसे चेक किया जाना चाहिए और पूरे वर्ष का कर्यक्रम होना चाहिए\
[5]कालोनिओं में पार्कों की व्यवस्था अव्यवस्था में तब्दील हो चुकी है ।अतिक्रमण का शिकार अधिकाँश पार्क में जानवरों की सैरगाह ही हैं डेरियां हैं।
निदान
बिना किसी भेद भाव के पार्कों को मुक्त करवा कर उनका रखरखाव कराना होगा।
[6]निगम को खाली पड़ी जमीन का और जमीन के अतिक्रमण का कोई हिसाब नहीं
निदान
जमीन का उचित इस्तेमाल किया जाना होगा अगर जरुरी हो तो उसे नीलाम करवा कर जनहित कार्यों के लिए फंड्स की व्यवस्था की जा सकती है।
[7]टेक्स निर्धारण और उसके कलेक्शन की कोई पारदर्शिता नहीं है
निदान
अगर स्टाफ की कमी है और अगर जरुरी समझा जाये तो आउट सोर्सिंग से यह कार्य नियमित रूप से कराया जा सकता है।
[8] शासन को बजट भेजते समय सभी दलों से छेत्र विशिष्ट नागरिकों से संपर्क या सलाह नहीं ली जाती
निदान
पर्याप्त बजट बना कर उसके प्राप्ति के लिए भी प्रयास करने होंगे।इसके लिए निरंतर दबाब बनाना होगा।[9]एतिहासिक नगरी को पर्यावरण के नक़्शे में पर्याप्त जगह नहीं है\
निदान
चौधरी अजित सिंह ने अपने पूर्व के कार्यकाल में मेरठ को पर्यावरण के नक़्शे पर लाने के प्रयास किये थेअब क्यूंकि अजित सिंह पुनः केन्द्रीय सत्ता में है सो अब पुनः उस विषय में दबाब बनाया जा सकता है
[10] मेरठ में स्वच्छ जल की समस्या है
निदान
गंगा जल को मेरठ लाने की कवायद को गति देनी होगी
[4]विभागों में सामंजस्य का अभाव कभी कभार सड़क बन भी जाये तो कभी केबल वाले तो कभी पानी वाले अब तो गैस वाले भी सड़को को काटने लग गए हैं ।बेशक हर विभाग का अपना अपना बजट होता है मगर आता तो हमारी जेबों से ही है यदि में भूलता नहीं तो सांसद ने संसद में भी यह सवाल उठाया था मगर वोही सांसद अपने इस छेत्र में कोई दबाब नहीं बना सके नतीजतन यत्र तत्र सर्वत्र भद्दे द्रश्य ही नज़र आते हैं।
निदान
उच्च स्तर पर सभी प्रभावी विभागों से पूरे वर्ष के कार्यक्रम की वरीयता ली जानी चाहिए और उसके हिसाब से कार्य में सामजस्य बैठाना चाहिए।इसकी अवहेलना करने वालों को दण्डित भी किया जानाचाहिए ।अक्सर देखा जता है की वर्ष के अंतिम माहों में ही कार्य समापन कराया जाता है इसे चेक किया जाना चाहिए और पूरे वर्ष का कर्यक्रम होना चाहिए\
[5]कालोनिओं में पार्कों की व्यवस्था अव्यवस्था में तब्दील हो चुकी है ।अतिक्रमण का शिकार अधिकाँश पार्क में जानवरों की सैरगाह ही हैं डेरियां हैं।
निदान
बिना किसी भेद भाव के पार्कों को मुक्त करवा कर उनका रखरखाव कराना होगा।
[6]निगम को खाली पड़ी जमीन का और जमीन के अतिक्रमण का कोई हिसाब नहीं
निदान
जमीन का उचित इस्तेमाल किया जाना होगा अगर जरुरी हो तो उसे नीलाम करवा कर जनहित कार्यों के लिए फंड्स की व्यवस्था की जा सकती है।
[7]टेक्स निर्धारण और उसके कलेक्शन की कोई पारदर्शिता नहीं है
निदान
अगर स्टाफ की कमी है और अगर जरुरी समझा जाये तो आउट सोर्सिंग से यह कार्य नियमित रूप से कराया जा सकता है।
[8] शासन को बजट भेजते समय सभी दलों से छेत्र विशिष्ट नागरिकों से संपर्क या सलाह नहीं ली जाती
निदान
पर्याप्त बजट बना कर उसके प्राप्ति के लिए भी प्रयास करने होंगे।इसके लिए निरंतर दबाब बनाना होगा।[9]एतिहासिक नगरी को पर्यावरण के नक़्शे में पर्याप्त जगह नहीं है\
निदान
चौधरी अजित सिंह ने अपने पूर्व के कार्यकाल में मेरठ को पर्यावरण के नक़्शे पर लाने के प्रयास किये थेअब क्यूंकि अजित सिंह पुनः केन्द्रीय सत्ता में है सो अब पुनः उस विषय में दबाब बनाया जा सकता है
[10] मेरठ में स्वच्छ जल की समस्या है
निदान
गंगा जल को मेरठ लाने की कवायद को गति देनी होगी
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